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Tuesday, January 4, 2011

Scribbles

"मुस्कुरा लिए ज़रा सा, थोड़ी सी साँस ले ली, 
हम वहाँ वहाँ हरे हैं, बूँदें गिरी जहाँ जहाँ."
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"जो ठहरा हुआ था मंज़र.. उसके निशाँ मिले..
खाना -बदोश जज़्बे , जाने कहाँ चले..
इक साज़ उठा था कहीं, धुन थी कहीं सुनी..
सेहराओं  के दामन में, तनहा से गुल खिले..
ठंडी सी रात का सफ़र, कटते नहीं लम्हे...
एहसास सर्द कर दे जो, कोई ऐसी हवा चले."
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"निकला था जब मैं घर से.. तुझे सीने में भर लिया था.. 
एक अरसे बाद जा के, फिर आज साँस  ली है.."

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