बूँद...
यूँ ही निकल गया था वो,
अनमना सा, जैसे कोई उम्मीद अभी टूटी हो ..
सर झुका था ज़रा सा, शायद अश्क़ छुपाने के लिए,
बहुत देर वो मेरी पलकों पे रुका था,
मैंने ही रोका हुआ था ज़बरदस्ती, वो तो कबसे जिद कर रहा था...
फिर पलकों से निकल के, होठों के रास्ते,
मेरे हाथों की लकीरों से होता हुआ... मेरा माज़ी भिगा गया..
या शायद वो खुद ही एक आँसू की बूँद था...
hmmm... abhi kuch kami si hai .. wanna reiterate it ..
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